वाल्मीकि रामायण मे परशुराम के विब्णुत्व का उल्लेख नहीं मिलता

वाल्मीकि रामायण मे परशुराम के
विब्णुत्व का उल्लेख नहीं मिलता


राम-कथा प्रेमियों को वह प्रसंग याद होगा,जब भगवान विष्णु के दो अवतार आमने-सामने आ गए थे।एक थे विष्णु के अंशावतार भृगुपुत्र परशुराम और दूसरे उनके पूर्णावतार कौशल्यानंदन  राम।ये प्रसंग था सीता-स्वयंर का,जब श्रीराम ने शिव-धनुष  भंग कर दिया था।तब मुनि वेषधारी परशुराम सहसा उस रंगशाला में आ जाते हैं और अपने गुरु भगवान शिव के टूटे हुए धनुष को देखकर अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं।वो राजा जनक से जानना चाहते हैं कि उन्हें जल्दी बताया जाए कि ऐसी धृष्टता किसने की और उसे उनके सामने प्रस्तुत किया जाए।ताकि, वे उसे उचित दंड़ दे सकें।साथ ही चेतावनी देते हैं कि नहीं बताने पर वहाँ उपस्थित सारे राजाओं का वध कर देंगे और वे जनक के राज्य को उलट-पलट देंगे।तब श्रीराम स्वयं को प्रस्तुत करते हुए उनका दास और दोषी बताकर विनीत-भाव और मधुर-वाणी से उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास करते हैं।किन्तु,लक्ष्मण परशुराम की ऐसी दंभ भरी बातों को सहन नहीं कर पाते और कुछ ऐसा व्यंग कर देते हैं,जिसे सुनकर मुनि और उत्तेजित हो जाते हैं।जैसे ही श्रीराम उनके आवेश को अपने मीठे वचनों से  शांत करते हैं,लक्ष्मण कुछ कड़वी बात बोल जाते हैं।अंत में परशुराम राम को चुनौती देते हैं कि या तो मेरे साथ युद्ध करो या अपने को राम कहलाना छोड़ दो।पर राम उनके मुनि और ब्राह्मण होने का हवाला देकर उनसे युद्ध करने से मना कर देते हैं।तब परशुराम को श्रीराम के  विष्णु होने का संदेह होता है और वे राम की परीक्षा लेने के लिए विष्णु-धनुष देते हुए कहते हैं कि इसका संधान करके मेरे संदेह को दूर करो।श्रीराम सहज ही ऐसा कर देते हैं।अब परशुराम के मन में कोई भ्रम नहीं रह जाता कि राम ही विष्णु हैंं।वे राम की स्तुति करते हैं और उन्हें प्रणाम कर तप करने करने के लिए महेन्द्र पर्वत पर चले जाते हैं।रामचरित मानस में इस प्रसंग को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।


राघवोल्लास काव्य मेें परशुराम राम की प्रभावपूर्ण बातों से ही शांत हो जाते हैं और उन्हें विष्णु-धनुष चढ़ाकर अपनी परीक्षा नहीं देना पड़ती है।परशुराम अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों को राम के चरणों में छोड़कर प्रस्थान करते हैं।कम्ब रामायण के अनुसार परशुराम-तेजोभंग के बाद देवता लोग आकाश से पुष्पवृष्टि करते हैं और राम विष्णु-धनुष वरुण को अर्पित कर देते हैं।प्रसन्नराघव में लक्ष्मण राम-परशुराम के वाग्युद्ध में भाग लेकर परशुराम का अपमान करते हैं।रामचंद्रिका में भरत और शत्रुघ्न भी परशुराम को संबोधित करते हैं और अंत में महादेव स्वयं आकर दोनों 'रामदेवों' को समझाकर शांत कर देते हैं।


रामचरित मानस,अध्यात्म रामायण,आनंद रामायण, राघवोल्लास काव्य इस प्रसंग को मिथिला में घटित होना मानते हैं।जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार परशुराम विवाह के बाद अयोध्या की यात्रा में राम को चुनौति देने आते हैं।किन्तु,दोनों का युद्ध नहीं होता,क्योंकि ज्यों ही राम विष्णु-धनुष चढ़ाते हैं,परशुराम निस्तेज होकर राम को विष्णु के रूप में प्रणाम करते हैं।राम चढ़े हुए बाण से परशुराम के तपोबल द्वारा संचित लोक नष्ट करते हैं और परशुराम महेंद्र पर्वत की ओर प्रस्थान करते हैं।


वाल्मीकि रामायण और अधिकतर रामकथाओं के अनुसार राम-परशुराम-संघर्ष का कारण यह भी था कि परशुराम एक सुयोग्य प्रतिद्वन्द्वी क्षत्रिय से युद्ध करना चाहते थे।नृसिंह पुराण में पहले-पहल एक अन्य कारण का उल्लेख मिलता है।परशुराम राम को यह चुनौति देते हैं: या तो राम नाम छोड़ दो या मेरे साथ युद्ध करो (त्यज त्वं राम संज्ञां तु मया वा समरं कुरु।) हिंदेशिया की सेरी राम और कम्बोडिया की रामकेर्ति में राम नाम ही संघर्ष कारण माना गया है।जबकि असमिया कृतिवास रामायण शिवधनुष का अपमान और राम का नाम दोनों को कारण मानता है।रंगनाथ रामायण में तीनों कारणों की चर्चा है।


कृतिवास रामायण में सीता यह देखकर कि परशुराम धनुष लिए आते हैं,इस प्रकार आशंका प्रकट करती हैं--एक धनुष तोड़कर रघुनाथ में मेरे साथ विवाह किया,अब भृगु मुनि एक और धनुष लाए हैं।न जाने मेरी कितनी सपत्नियाँ होंगी।गोविंद रामायण में सीता की यह आशंका इस तरह व्यक्त की गई है:
    तोर शरासन संकर को जिमि
    मोहि बर्यो तिमि और बरेंगे।


वाल्मीकि रामायण में परशुराम- तेजोभंग के वर्णन में परशुराम के विष्णुत्व का उल्लेख नहीं मिलता।नृसिंहपुराण ऐसी प्राचीनतम रचना है,जिसमें उनके तेजोभंग के प्रसंग में परशुराम का अवतार होने का संकेत किया गया है।राम के धनुष चढ़ाने पर परशुराम का वैष्णव तेज उनके शरीर से निकल कर राम के मुख में प्रविष्ट हुआ--परशुरामस्य देहान्निष्क्रम्य वैष्णवं पश्यतां सर्वभूतानां तेजो राममुखेअ्विशत्।अध्यात्म रामायण,आनंदरामायण, पद्मपुराण और रामचंद्रिका में भी परशुराम के अंशावतार होने का उल्लेख किया गया है।हरिवंशपुराण,विष्णुपुराण, भागवत पुराण में विष्णु अवतारों की सूची में उनका नाम प्राय: आया है
              
*विजय बुधोलिया जी के फेसबुक वाल से साभार।